Thursday, April 26, 2018

तेरी याद में

              किस से कहूँ तेरी शिकायत


*हर पल मुस्कुराओ,* *बड़ी* *“खास”*
          *हे जिंदगी…!*
*क्या सुख क्या दुःख ,बड़ी “आस”*
           *है जिंदगी… !*
*ना शिकायत करो .ना कभी*
             *उदास हो.*
*जिंदा दिल से जीने का “अहसास”*
           *हे जिंदगी…..!!*
 


दुआ है की कामयाबी के हर सिखर पे आप का नाम होगा,
आपके हर कदम पर दुनिया का सलाम होगा,
हिम्मत से मुश्किलों का समाना करना
हमारी दुआ है की वक़्त भी एक दिन आपका गुलाम होगा...!!

Monday, April 23, 2018

बच्चे... बडे..

             मेरे बच्चे बडे हो गये..

मेरे बच्चे अब बड़े हो गए हैं और हम अकेले हो गए हैं.😔

बिस्तरों पर अब सलवटें नहीं पड़ती
ना ही इधर उधर छितराए हुए कपड़े हैं👗

रिमोट  के लिए भी अब झगड़ा नहीं होता
ना ही खाने की नई नई फ़रमायशें हैं

मेरे बच्चे अब बड़े हो गए हैं और हम अकेले हो गए हैं.

सुबह अख़बार📰 के लिए भी नहीं होती मारा मारी.
घर 🏠 बहुत बड़ा और सुंदर दिखता है
पर हर कमरा बेजान सा लगता है
अब तो वक़्त काटे भी नहीं कटता 🙄
बचपन की यादें कुछ दिवार पर फ़ोटो में सिमट गयी हैं
मेरे बच्चे अब बड़े हो गए हैं और हम अकेले हो गए हैं.

अब मेरे गले से कोई नहीं लटकता ,
ना ही घोड़ा🐴 बनने की ज़िद होती है
खाना खिलाने को अब चिड़िया🐦 नहीं उड़ती .
खाना खिलाने के बाद की तसल्ली भी अब नहीं मिलती
ना ही रोज की बहसों और तर्कों का संसार है
ना अब झगड़ों को निपटाने का मजा है
ना ही बात बेबात गालों पर मिलता दुलार है
बजट की खींच तान भी अब नहीं है

मेरे बच्चे अब बड़े हो गए हैं और हम अकेले हो गए हैं

पलक झपकते ही जीवन का स्वर्ण काल निकल गया
पता ही नहीं चला
इतना ख़ूबसूरत अहसास कब पिघल गया
तोतली सी आवाज़ में हर पल उत्साह था
पल में हँसना पल में रो देना
बेसाख़्ता गालों पर उमड़ता प्यार था
कंधे पर थपकी और गोद में सो जाना
सीने पर लिटाकर वो लोरी सुनाना
बार बार उठ कर रज़ाई को उड़ाना
अब तो बिस्तर बहुत बड़ा हो गया है
मेरे बच्चों का प्यारा बचपन कहीं खो गया है

अब कोई जुराबे इधर उधर नहीं फेंकटा है..
अब fridge भी घर की तरह खाली रे‍हता है

बाथरूम भी सूखा रे‍हता है
Kitchen हर दम सिमटा रे‍हता है
अब हर घंटी पर लगता है कि श्‍यद कोई surprise है
और बच्चो की कोई नयी फरमिश है
अब तो रोज सुबह शाम मेरी सेहत फोन पर पूँछते हैं
मुझे अब आराम की हिदायत देते हैं
पहले हम उनके  झगड़े निपटाते थे
आज वे हमें समझाते हैं
लगता है अब शायद हम बच्चे हो गए हैं

मेरे बच्चे अब बड़े हो गए हैं और हम अकेले हो गए हैं.
                चंद्रा भगत् ।

Sunday, April 22, 2018

तेरा ख्याल..।

              तेरा ......ख्याल

1-"कर लेता हूँ बर्दाश्त हर दर्द इसी आस के साथ..की*
   खुदा नूर भी बरसाता है ... आज़माइशों के बाद".!!!*


2- किसको बर्दाश्त है "साहेब" तरक़्क़ी आजकल दुसरो की*....
   लोग तो मय्यत की भीड़ देखकर भी जल जाते है*..

3-"निभाएँ किस तरह रिश्ते,समझ में कुछ नहीं आता,*
     किसी से दिल नहीं मिलता,कोई दिल से नहीं मिलता.....*
4- किसी ने मुजसे कहा, आपकी आँखे बड़ी खूबसूरत है,*
   मैने कहा, बारिश के बाद अक्सर मौसम सुहाना हो जाता है!*

5- सिखा दिया है जहां ने हर जख्म पर हंसना*
    ले देख जिंदगी अब हम तुझसे नहीं डरते*....

6-न माँझी,न रहबर,न हक मे हवाएं,है
   कश्ती भी जर्जर, ये कैसा सफर है...

6-अलग ही मजा है फ़कीरी का अपना,
   न पाने की चिंता न खोने का डर है.....
   एक बच्चे ने बड़ी मासूमियत से  "गुड मार्निंग"  का        मतलब बताया....*

 7-मेरी अच्छी मां ..सुबह से उठकर इधर से उधर दौड़-      दौड़ कर काम करती रहती है  न...।*

              चंद्रा भगत् ।

Saturday, April 21, 2018

पल पल .का बदलाव..

           
          सीखना ही जिंदगी है ।


*दर्द कागज़ पर,*
          *मेरा बिकता रहा,*

*मैं बैचैन था,*
          *रातभर लिखता रहा..*

*छू रहे थे सब,*
          *बुलंदियाँ आसमान की,*

*मैं सितारों के बीच,*
          *चाँद की तरह छिपता रहा..*

*अकड होती तो,*
          *कब का टूट गया होता,*

*मैं था नाज़ुक डाली,*
          *जो सबके आगे झुकता रहा..*

*बदले यहाँ लोगों ने,*
         *रंग अपने-अपने ढंग से,*

*रंग मेरा भी निखरा पर,*
         *मैं मेहँदी की तरह पीसता रहा..*

*जिनको जल्दी थी,*
         *वो बढ़ चले मंज़िल की ओर,*

*मैं समन्दर से राज,*
         *गहराई के सीखता रहा..!!*

*"ज़िन्दगी कभी भी ले सकती है करवट...*
*तू गुमान न कर...*

*बुलंदियाँ छू हज़ार, मगर...*
*उसके लिए कोई 'गुनाह' न कर.*

*कुछ बेतुके झगड़े*,
*कुछ इस तरह खत्म कर दिए मैंने*

*जहाँ गलती नही भी थी मेरी*,
*फिर भी हाथ जोड़ दिए मैंने*
                   चंद्रा भगत्

Friday, April 13, 2018

फलसफा तेरा...

  ऐ जिंदगी तेरा फलसफा....

_एक घडी खरीदकर_
_हाथ मे क्या बांध ली_

        _वक्त पीछे ही_
        _पड गया मेरे._

_सोचा था घर बना कर_
_बैठुंगा सुकून से,_

        _पर घर की जरूरतों ने_
        _मुसाफिर बना डाला मुझे._


_सुकून की बात मत कर_
_ऐ गालिब,_

        _बचपन वाला इतवार_
        _अब नहीं आता._


_जीवन की भाग दौड मे_
_क्यूँ वक्त के साथ रंगत खो जाती है ?_

        _हँसती-खेलती जिन्दगी भी_
        _आम हो जाती है._


_एक सवेरा था_
_जब हँसकर उठते थे हम,_

        _और आज कई बार बिना मुस्कुराये_
        _ही शाम हो जाती है._


_कितने दूर निकल गए_
_रिश्तों को निभाते निभाते,_

        _खुद को खो दिया हम ने_
        _अपनों को पाते पाते._


_लोग केहते है_
_हम मुस्कुराते बहुत है,_

        _और हम थक गए_
        _दर्द छुपाते छुपाते._


_खुश हूँ और सबको_
_खुश रखता हूँ,_

        _लापरवाह हूँ फिर भी_
        _सब की परवाह करता हूँ._



_मालूम है_
_कोई मोल नहीं है मेरा फिर भी_

        _कुछ अनमोल लोगों से_
        _रिश्ता रखता हूँ._

      चन्द्रा भगत्.

अनुभव मेरा..




    एक सुंदर कविता....

_ख्वाहिश नहीं मुझे_
_मशहूर होने की,

        _आप मुझे पेहचानते हो_
        _बस इतना ही काफी है._


_अच्छे ने अच्छा और_
_बुरे ने बुरा जाना मुझे,_

        _क्यों की जिसकी जितनी जरूरत थी_
        _उसने उतना ही पहचाना मुझे._


_जिन्दगी का फलसफा भी_
_कितना अजीब है,_

        _शामें कटती नहीं और_
        _साल गुजरते चले जा रहें है._


_एक अजीब सी_
_दौड है ये जिन्दगी,_

        _जीत जाओ तो कई_
        _अपने पीछे छूट जाते हैं और_

_हार जाओ तो_
_अपने ही पीछे छोड़ जाते हैं._


_बैठ जाता हूँ_
_मिट्टी पे अकसर,_

        _क्योंकी मुझे अपनी_
        _औकात अच्छी लगती है._

_मैंने समंदर से_
_सीखा है जीने का सलीका,_

        _चुपचाप से बहना और_
        _अपनी मौज मे रेहना._


_ऐसा नहीं की मुझमें_
_कोई ऐब नहीं है,_

        _पर सच कहता हूँ_
        _मुझमें कोई फरेब नहीं है._


_जल जात है मेरे अंदाज से_
_मेरे दुश्मन,_

              _क्यों की एक मुद्दत से मैंने,
.... न मोहब्बत बदली
      और न दोस्त बदले हैं._

           चंद्रा भगत्









Thursday, April 12, 2018

वाह रे मेरे बचपन..

      मेरा परिवार ...

----- बड़े होकर भाई-बहन ------
------ कितने दूर हो जाते हैं ------
------ इतने व्यस्त हैं सभी ------
------ कि मिलने से भी मजबूर हो जाते हैं ------

------ एक दिन भी जिनके बिना ------
------ नहीं रह सकते थे हम ------
------ सब ज़िन्दगी में अपनी ------
------ मसरूफ हो जाते हैं ------

------ छोटी-छोटी बात बताये बिना ------
------ हम रह नहीं पाते थे ------
------ अब बड़ी-बड़ी मुश्किलों से ------
------ हम अकेले जूझते जाते हैं ------

------ ऐसा भी नहीं ------
------ कि उनकी एहमियत नहीं है कोई ------
------ पर अपनी तकलीफें ------
------ जाने क्यूँ उनसे छिपा जाते हैं ------

------ रिश्ते नए ------
------ ज़िन्दगी से जुड़ते चले जाते हैं ------
------ और बचपन के ये रिश्ते ------
------ कहीं दूर हो जाते हैं ------

------ खेल-खेल में रूठना-मनाना ------
------ रोज़-रोज़ की बात थी ------
------ अब छोटी सी भी गलतफहमी से ------
------ दिलों को दूर कर जाते हैं ------

------ सब अपनी उलझनों में ------
------ उलझ कर रह जाते हैं ------
------ कैसे बताए उन्हें हम ------
------ वो हमें कितना याद आते हैं ------

------ वो जिन्हें एक पल भी ------
------ हम भूल नहीं पाते हैं ------
------ बड़े होकर वो भाई-बहन ------
------ हमसे दूर हो जाते हैं -----
                     चंद्रा भगत्

Wednesday, April 11, 2018

कटपुतली...

        रंगमंच है जिंदगी

             *किस्मत करवाती है*
         *कटपुतली का खेल जनाब!*
                          *वरना,*

          *ज़िन्दगी के रंगमंच पर कोई भी*
          *कलाकार कमज़ोर नहीं होता!!*

          *मिट्टी के दीपक सा*
                 *है ये जीवन..*

                *तेल खत्म*
               *खेल खत्म...*।

     
        वक्त की एक आदत बहुत
                 अच्छी है,
        जैसा भी हो,  गुजर जाता है!
            “कामयाब इंसान खुश
                  रहे ना रहे,
        खुश रहने वाला इंसान कामयाब
              जरूर हो जाता है।

आंसू जता देते है दर्द कैसा है।*
*बेरूखी बता देती है हमदर्द कैसा है ॥*

*घमण्ड बता देता है कितना पैसा है ।*
*संस्कार बता देते है परिवार कैसा है ॥*

*बोली बता देती है  इंसान कैसा है  ।*
*बहस बता  देती है  ज्ञान कैसा है।*

*नजरें बता देती है  सूरत कैसी है ।*
*स्पर्श बता देता है  नीयत कैसी है ॥*।
                     चंद्रा भगत ।

Sunday, April 8, 2018

तेरी तेरी याद में..

           तडफन दिल की...


आज फिर से बीते लम्हों को याद करने बैठा हूँ,
आज फिर से अपने आप को तडफाने बैठा हूँ ,
ओ बचपन से जवानी तक के यार दोस्तों को ढुढ़ने बैठा हूँ,
आज बहुत दिनों के बाद जाम ले कर बैठा हूँ,
आज अपने आप से कुछ दिल की बात कहने बैठा हूँ,
हाँ उसकी यादों को भी आज दिल से लगाये बैठा।
Mohan Negi

Friday, April 6, 2018

तेरा ख्याल...


        बस चलते चलते तेरा ख्याल गया.।

 मोहब्बत की आजमाइश दे दे कर थक गया हूँ ऐ खुदा..
किस्मत मेँ कोई ऐसा लिख दे, जो मौत तक वफा करे ।

चित्रकार तुझे उस्ताद मानूँगा,
दर्द भी खींच मेरी तस्वीर के साथ।

 मत किया कर ऐ दिल किसी से मोहौबत इतनी ,जो लोग बात नहीं करते वो प्यार क्या करेंगे ।

कुछ खास नही बस इतनी सी है मोहब्बत मेरी ..
हर रात का आखरी खयाल और हर सुबह की पहली सोच हो तुम ।

चलो माना कि हमें प्यार का इज़हार करना नहीं आता,
जज़्बात न समझ सको इतने नादान तो तुम भी नहीं।

सब सो गए अपना दर्द
अपनो को सुना के..
मेरा भी कोई अपना होता
तो मुझे भी नीद आ जाती ।
              Mohan Negi ।

Sunday, April 1, 2018

तुझ से ही है राफता..



1-रोज आते हैं दीदार को ,
रोज बुनते हैं तेरे सपने,
 बस सब मिलते हैं हमसे,
मिलती नहीं तू ही ।

2-हम वो हैं जो आँखों में आँखें डाल के सच जान लेते हैं तुझसे मुहब्बत है बस इसलिये तेरे झूठ भी सच मान लेते हैं..हम  ...हैं ।

3-सुनो मुझे भरमाओ मत . . .के बस तुम्हें ही तकते रहें . ..तुम माना अच्छे लगते हो पर.हमें और भी बहुत काम है

5-मेरा दर्द किसी के लिए हँसने की वजह हो सकता है ,
पर मेरी हँसी कभी भी किसी के दर्द की वजह नहीं होनी चाहिए..!!Mohan neg