महुआ..
नमस्कार दोस्तों आज मैं आप को एक पौधें बारे में बताने हूँ जो भारत में उगाया जाता यह आयुर्वेद बहुत उपयोगी होने साथ -साथ इमरती लकड़ी के लिए भी उपयोगी है.
तो आइये मैं आप को उस पौधें के बारे में बताता हूँ।
महुआ
पौधे की जानकारी
उपयोग :
छाल का उपयोग कुष्ठ रोग का इलाज करने और घावों को ठीक करने के लिए किया जाता है।
फूलों का उपयोग खांसी, मतली और हद्य से संबधित रोगों के इलाज के लिए किया जाता है।
फूलों का उपयोग गैर शराबी उत्पाद जैसे जेम, जेली, शरबत, अचार, बेकरी और मिठाई से संबंधित खाद्य पदार्थ बनाने में किया जाता है।
फलों का उपयोग रक्त संबंधी रोगो में किया जाता है।इसका उपयोग पारंपरिक शराब बनाने में किया जाता है।
महुआ तेल का उपयोग साबुन निर्माण में किया जाता है।
उपयोगी भाग :तो आइये मैं आप को उस पौधें के बारे में बताता हूँ।
महुआ
पौधे की जानकारी
उपयोग :
छाल का उपयोग कुष्ठ रोग का इलाज करने और घावों को ठीक करने के लिए किया जाता है।
फूलों का उपयोग खांसी, मतली और हद्य से संबधित रोगों के इलाज के लिए किया जाता है।
फूलों का उपयोग गैर शराबी उत्पाद जैसे जेम, जेली, शरबत, अचार, बेकरी और मिठाई से संबंधित खाद्य पदार्थ बनाने में किया जाता है।
फलों का उपयोग रक्त संबंधी रोगो में किया जाता है।इसका उपयोग पारंपरिक शराब बनाने में किया जाता है।
महुआ तेल का उपयोग साबुन निर्माण में किया जाता है।
संपूर्ण वृक्ष
रासायिनक घटक :
फूल चीनी, प्रोटीन, विटामिन और खनिजों के समृध्द स्त्रोत होते है।
उत्पति और वितरण :
यह मूल रूप से भारत का वृक्ष है और शुष्क क्षेत्रो के लिए अनुकूल है। यह प्रजाति संपूर्ण भारत, श्रीलंका और संभवत: म्यमार (पहले वर्मा) में पाई जाती है। भारत में यह गर्म भागों उष्णकटिबंधीय हिमालय और पश्चिमी घाट में पाया जाता है।
वितरण : महुआ भारतीय वनों का सबसे महत्वपूर्ण वृक्ष है जिसका कारण ना केवल इससे प्राप्त बहुमूल्य लकड़ी है वल्कि इससे प्राप्त स्वादिष्ट और पोषक फूल भी है। यह अधिक वृध्दि करने वाला वृक्ष है। इसकी सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इसके फूलों को संग्रहीत करके लगभग अनिश्चित काल के लिए रखा जा सकता है।
वर्गीकरण विज्ञान, वर्गीकृत
कुल : सपोटेसी
आर्डर : एरीकेलीस
प्रजातियां : एम. लांगीफोलियावितरण :
महुआ भारतीय वनों का सबसे महत्वपूर्ण वृक्ष है जिसका कारण ना केवल इससे प्राप्त बहुमूल्य लकड़ी है वल्कि इससे प्राप्त स्वादिष्ट और पोषक फूल भी है। यह अधिक वृध्दि करने वाला वृक्ष है। इसकी सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इसके फूलों को संग्रहीत करके लगभग अनिश्चित काल के लिए रखा जा सकता है।
आकृति विज्ञान, बाह्रय स्वरूप
स्वरूप :यह एक विशाल और मोटी छाल वाला पर्णपाती वृक्ष है।
पेड़ की छाल भूरे रंग की और लंबवत् ददारों के साथ होती है।
पत्तिंया :
पत्तियाँ शाखाओ के शिरे में समूहों के रुप में, अण्डाकार और आयताकार आकार की होती है।
युवा पत्तियाँ रोमिल होती है।
अधिकांश पत्तियाँ फरवरी से अप्रैल माह में गिर जाती है।
फूल :
इस वृक्ष में फूल 10 वर्ष की आयु से शुरू होते है और लगभग 100 वर्ष तक लगातार आते रहते है।
फूल घने, अधिक मात्रा में आकार में, छोटे और पीले सफेद रंग के होते है।
फूलों से कस्तूरी जैसी सुगंध आती है।
फूल मार्च - अप्रैल माह में आते है।
फल :
फल अंडाकार और 1-2 इंच लंबे होते है ।
फल प्रारंभ मे हरे और परिपक्व होने पर पीले दिखाई देते है।
फलों का बाहरी आवरण भोजन के रूप में उपयोग किया जाता है।
फल मई से अगस्त माह में आते है।
परिपक्व ऊँचाई :
यह वृक्ष लगभग 20 मी. तक की ऊँचाई तक बढ़ता हैं।
यह किसी भी मिटटी और पर्यावरण में पैदा हो जाता है इस के बारे में आप ने पढ़ ही लिया होगा।
आप कमेंट और like जरूर करें और यह जरूर बतायें मेरा लेख कैसा सा लगा।
मोहन नेगी
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