अपनी जिंदगी को एक कविता....।
भाग -2
अपनी जिंदगी को एक कविता में कहूँ तो कैसे
,....... रोज -रोज स्कूल जाना . रास्तों में दौड़ -दौड़ कर जाना
........ सबसे पीछे पीछे लगना .घन्टीं लगाने दौड़ कर जाना
अपनी जिंदगी को एक ....
........अब तो समझ बढ़ने लगी उम्र भी आगे चलने लगी .
........पढ़ना मन लगा कर . कुछकरने की चाह जगने लगी
अपनी जिंदगी को एक कविता में ......
.......भारी झोला कांधे में रख कर दौड़ -दौड़ स्कूल जाना .
.......छुट्टी हो तो सबसे पहले दौड़-दौड़ घर आना
अपनी जिंदगी को एक कविता.....!
मोहन नेगी
अपनी जिंदगी को एक कविता में कहूँ तो कैसे
,....... रोज -रोज स्कूल जाना . रास्तों में दौड़ -दौड़ कर जाना
........ सबसे पीछे पीछे लगना .घन्टीं लगाने दौड़ कर जाना
अपनी जिंदगी को एक ....
........अब तो समझ बढ़ने लगी उम्र भी आगे चलने लगी .
........पढ़ना मन लगा कर . कुछकरने की चाह जगने लगी
अपनी जिंदगी को एक कविता में ......
.......भारी झोला कांधे में रख कर दौड़ -दौड़ स्कूल जाना .
.......छुट्टी हो तो सबसे पहले दौड़-दौड़ घर आना
अपनी जिंदगी को एक कविता.....!
मोहन नेगी
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