Saturday, February 17, 2018

रेत सा..

"रेत की कणों सा बिखरता चला गया मैं,
कभी सिमटा सा कभी ढलता गया मैं,
कभी पानी की बूदों के साथ धुलता गया मैं,
कभी हवा में पतंग सा उडता गया मैं।"
कभी गहरी खाई में लुडकता गया हूँ में,
कभी लहराता आसमान में उड़ गया में,
रह-रह कर आज तक सोचता रह गया मैं,
यही है क्या जिंदगी। msnegi

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