यूँ ही..।
यूँ ही ..
खटखटाते रहिए दरवाजा एक दूसरे के
मुलकातें ना सही,रिश्तो मे आहटें आती
ही रहनी चाहिए,
यहाँ हर किसी को, दरारों में झाकने की आदत है,
दरवाजे खोल दो,यकीन मानिए कोई पूछने भी नहीं आएगा।
याददाश्त का कमज़ोर होना बुरी बात नहीं है जनाब
बड़े बेचैन रहते है वो लोग जिन्हे हर बात याद रहती है।
रुकावटें तो सिर्फ ज़िंदा इंसान के लिए हैं,
मय्यत के लिए तो सब रास्ता छोड़ देते हैं।
दौड़ने दो खुले मैदानों में नन्हे कदमों को,,, साहब, ज़िन्दगी बहुत भगाती है बचपन गुजर जाने के बाद,
चंद्रा भगत्
0 Comments:
Post a Comment
Subscribe to Post Comments [Atom]
<< Home