Saturday, August 18, 2018

मेरा जीवन..।

कुछ भी...
 
1990 से पहले जन्म वाले जरुर पढ़े
बहुत अच्छी फीलिंग आयेगी  ☺
.
हम लोग,
जो 1947  से  1990
 के बीच जन्में  है,
 We are blessed because,

       

👍     हमें कभी भी

👌हमारें माता- पिता को
 हमारी पढाई को लेकर
कभी अपने programs
आगे पीछे नही करने पड़ते थे...!

👍    स्कूल के बाद हम
देर सूरज डूबने तक खेलते थे  

👍    हम अपने
real दोस्तों के साथ खेलते थे;
net फ्रेंड्स के साथ नही ।

👍     जब भी हम प्यासे होते थे
तो नल से पानी पीना
safe होता था और
हमने कभी mineral water bottle को नही ढूँढा ।

👍     हम कभी भी चार लोग
गन्ने का जूस उसी गिलास से ही
पी करके भी बीमार नही पड़े ।

👍     हम एक प्लेट मिठाई
और चावल रोज़ खाकर भी
बीमार  नही हुए ।

👍     नंगे पैर घूमने के बाद भी
 हमारे पैरों को कुछ नही होता था ।

👍     हमें healthy रहने
के लिए  Supplements नही
लेने पड़ते थे ।

👍     हम कभी कभी अपने खिलोने
खुद बना कर भी खेलते थे ।

👍     हम ज्यादातर अपने parents के साथ या  grand- parents के पास ही रहे ।

👌हम अक्सर 4/6 भाई बहन
एक जैसे कपड़े पहनना
शान समझते थे.....
common. वाली नही
एकतावाली  feelings ...
enjoy करते थे

👍     हमारे पास
न तो Mobile,  DVD's,
PlayStation, Xboxes,
PC, Internet, chatting,
क्योंकि
हमारे पास real दोस्त थे ।

👍     हम दोस्तों के घर
 बिना बताये जाकर
मजे करते थे और
उनके साथ खाने के
मजे लेते थे।
कभी उन्हें कॉल करके
appointment नही लेना पड़ा ।

👍     हम एक अदभुत और
सबसे समझदार पीढ़ी है क्योंकि
हम अंतिम पीढ़ी हैं जो की
अपने parents की सुनते हैं...
और
साथ ही पहली पीढ़ी
जो की
अपने बच्चों की सुनते हैं ।

We are not special,
but.
We are
LIMITED EDITION
and we are enjoying the
Generation                   Gap......

 share if u r agree
*तेरी बुराइयों* को हर *अख़बार* कहता है,
और तू मेरे *गांव* को *गँवार* कहता है   //

*ऐ शहर* मुझे तेरी *औक़ात* पता है  //
तू *चुल्लू भर पानी* को भी *वाटर पार्क* कहता है  //

*थक*  गया है हर *शख़्स* काम करते करते  //
तू इसे *अमीरी* का *बाज़ार* कहता है।

*गांव*  चलो *वक्त ही वक्त*  है सबके पास  !!
तेरी सारी *फ़ुर्सत* तेरा *इतवार* कहता है //

*मौन*  होकर *फोन* पर *रिश्ते* निभाए जा रहे हैं  //
तू इस *मशीनी दौर*  को *परिवार* कहता है //

जिनकी *सेवा* में *खपा*  देते थे जीवन सारा,
तू उन *माँ बाप*  को अब *भार* कहता है  //

*वो* मिलने आते थे तो *कलेजा* साथ लाते थे,
तू *दस्तूर*  निभाने को *रिश्तेदार* कहता है //

बड़े-बड़े *मसले* हल करती थी *पंचायतें* //
तु  अंधी *भ्रष्ट दलीलों* को *दरबार*  कहता है //

बैठ जाते थे *अपने पराये* सब *बैलगाडी* में  //
पूरा *परिवार*  भी न बैठ पाये उसे तू *कार* कहता है  //

अब *बच्चे* भी *बड़ों* का *अदब* भूल बैठे हैं //
तू इस *नये दौर*  को *संस्कार* कहता है  *.//*

किसी मित्र ने पोस्ट किया था जिसे पढ़ने के बाद मैं रोक न सका और आप सभी के बिच समर्पित किया !!.

0 Comments:

Post a Comment

Subscribe to Post Comments [Atom]

<< Home