कबुल
कबुल...तेरे खातिर...
अपनी जिंदगी के अलग ही उसुल है,
यार की खातिर तो कांटे भी कबुल है,
हसकर चल दू कांच के टुकडों पर भी,
अगर यार कहे ये मेरे बिछाए हुए फुल है…
मिल सके आसानी से ,,,,
उसकी ख्वाहिश किसे है?
ज़िद तो उसकी है ...
जो मुकद्दर में लिखा ही नहीं!
आँखों के परदे भी नम हो गये!
बातो के सिलसिला भी कम हो गये!
न जाने गलती किसकी है!
समय बुरा है या हम बुरे हो गये!
चंद्रा भगत् ।
अपनी जिंदगी के अलग ही उसुल है,
यार की खातिर तो कांटे भी कबुल है,
हसकर चल दू कांच के टुकडों पर भी,
अगर यार कहे ये मेरे बिछाए हुए फुल है…
मिल सके आसानी से ,,,,
उसकी ख्वाहिश किसे है?
ज़िद तो उसकी है ...
जो मुकद्दर में लिखा ही नहीं!
आँखों के परदे भी नम हो गये!
बातो के सिलसिला भी कम हो गये!
न जाने गलती किसकी है!
समय बुरा है या हम बुरे हो गये!
चंद्रा भगत् ।
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