जय हो..
दिवाना...
हम दिवानों की क्या हस्ती,है आज यहाँ कल वहाँ चले,
मस्ती का आलम साथ चला ,हम धूल उडाते जहाँ चले!
..........आए बनकर उल्लास अभी ,आँसू बनकर बह चले,
..........सब कहते ही रह गये, अरे, तुम कैसे आए,कहाँ चले?
किस ओर चले ?यह मत पुछो,चलना है, बस इसलिए चले,
जग से उसका कुछ लिए चले,जग को अपना कुछ दिअ चले!
.........भगवतीचरण वर्मा.. की " दीवानों की हस्ती" रचना के कुछ अंश....जो जोस दिलाने... मन मानी करने को कह रही है
................ मोहन नेगी....
हम दिवानों की क्या हस्ती,है आज यहाँ कल वहाँ चले,
मस्ती का आलम साथ चला ,हम धूल उडाते जहाँ चले!
..........आए बनकर उल्लास अभी ,आँसू बनकर बह चले,
..........सब कहते ही रह गये, अरे, तुम कैसे आए,कहाँ चले?
किस ओर चले ?यह मत पुछो,चलना है, बस इसलिए चले,
जग से उसका कुछ लिए चले,जग को अपना कुछ दिअ चले!
.........भगवतीचरण वर्मा.. की " दीवानों की हस्ती" रचना के कुछ अंश....जो जोस दिलाने... मन मानी करने को कह रही है
................ मोहन नेगी....
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