पहाडी...हम
हम पहाड़ियो की बात..
हम.पहाडी़ के देहाती बच्चे थे,
प्राथमिक स्कूल में पढते थे,
पाट्टी लेकर स्कूल जाते थे,
पाट्टी में लिखा थूक,हाथ और कपडे़ से रघडकर मिटाते थे।
बाँस( निगाँँलू)की पतली कलम से
सफेद मिट्टी के घोल से लिखते थे,
पाट्टी को तवे की कालिख से पोतना,
हरे पत्तों से रघडना,और छोटे सिल से घोटा लगाते थे।
पाट्टी को चमकाने में हाथ,गाल,
नाक और कपडे काले हो जाते थे,
पाट्टी पर चमक आना वैसे ही
हमारे चेहरे भी चमक जाते थे।
पाट्टी में लिखते और दूसरा वादन आते ही लिखा हुआ मिटा देते थे ,
हम पहाड़ के देहाती बच्चे थे,
प्राथमिक स्कूल में पढ़ने जाते थे।
मोहन नेगी
हम.पहाडी़ के देहाती बच्चे थे,
प्राथमिक स्कूल में पढते थे,
पाट्टी लेकर स्कूल जाते थे,
पाट्टी में लिखा थूक,हाथ और कपडे़ से रघडकर मिटाते थे।
बाँस( निगाँँलू)की पतली कलम से
सफेद मिट्टी के घोल से लिखते थे,
पाट्टी को तवे की कालिख से पोतना,
हरे पत्तों से रघडना,और छोटे सिल से घोटा लगाते थे।
पाट्टी को चमकाने में हाथ,गाल,
नाक और कपडे काले हो जाते थे,
पाट्टी पर चमक आना वैसे ही
हमारे चेहरे भी चमक जाते थे।
पाट्टी में लिखते और दूसरा वादन आते ही लिखा हुआ मिटा देते थे ,
हम पहाड़ के देहाती बच्चे थे,
प्राथमिक स्कूल में पढ़ने जाते थे।
मोहन नेगी
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