Sunday, January 12, 2020

बांस की खेती

बांस की खेती कैसे और कब करनी चाहिये। 

परिचय  

बांस  प्रकृति की अदभुत देन है। संख्या तथा विधिता की दृष्टि से किसी उगाये जाने वाले पादप के इतने उपयोग नहीं होते जितने बांस के होते हैं। बांस की मानव जीवन में सदैव महत्वपूर्ण भूमिका रही है।
बांस विशाल घासों कुल का पौधा है जिसमें कल्मों भूमिगत राइजोम से उत्पन्न होती है। यहझाड़ीनुमा होता है, जिसकी प्रक्रति वृक्ष की तरह होती है। इस धरती पर यह सबसे तीव्र गति से बढ़ने वाला पौधा है। बांस को काष्ठीय रूप में वर्गीकृत किया जाता है। ज्यादातर पोरी (इंटरनोड्स) डे साथ हौलो-कल्म तथा कल्म नोड्स पर शाखाएँ होती है। बांस की आनुवांशिक विविधता की सम्पन्नता के सन्दर्भ में भारत विश्व का दूसरा देश है यहाँ 75 वंशक्रमों (जेनेरा) के तहत कुल 136 प्रजातियाँ पाई जाती है। इसकी परिधि में वन क्षेत्र का लगभग 8.96 मिलियन हेक्टेयर आता है जो देश कुल वन क्षेत्र के 12.8% के समतुल्य है। वनीय क्षेत्र में इसे खराब प्रबंधन, कम उत्पादकता तथा अत्याधिक दोहन के कारण नुकसान होता है। यद्यपि हाल के वर्षों में विकास के एक प्रमुख घटक तथा निर्धन ग्रामीणों के जीवन निर्वाह में सुधार  के लिए एक प्रभावशाली तरीके के तौर पर बांस के बारे में जागरूकता में बढ़ोतरी हुई है। इस पेड़ के 1500 से ज्यादा उपयोग दर्ज है (पालना-झुला से लेकर ताबूत तक) तथा इसमें रोजगार तथा आय सृजन और गरीब ग्रा

लकड़ी के स्थान पर बांस उत्पाद

यद्यपि आधुनिक प्रौद्योगिकी के उपयोग द्वारा बनांये गए उत्पादों, लकड़ी उत्पादों, विशेष रूप से सख्त, लकड़ी उत्पाद की तरह इस्तेमाल किये जाने के लिए तरह उपयुक्त है। सख्त लकड़ी की प्रजातियाँ जैसे टीक, साल, बांजु (ओक), मैफिल, माइकेला डी पटी रोकारपस आदि को परिपक्व होने में 80 वर्ष से भी ज्यादा समय लगता है जबकि बांस को परिपक्व होने में 4 वर्ष का समय लगता है। इस प्रकार जब हम बांस उत्पादों का उपयोग करते हैं उस समय हम कुछ हद तक लकड़ी का प्रतिस्थापन करते हैं जिसमें हम अपने वनों की सुरक्षा करते हैं जो हमारी धरती को अगली पीढ़ी के लिए हरा-भरा और स्वच्छ बनाते हैं।मीणों के पोषण में सुधार की व्यापक संभावनाएं मौजूद है। 

लकड़ी के स्थान पर बांस उत्पाद

यद्यपि आधुनिक प्रौद्योगिकी के उपयोग द्वारा बनांये गए उत्पादों, लकड़ी उत्पादों, विशेष रूप से सख्त, लकड़ी उत्पाद की तरह इस्तेमाल किये जाने के लिए तरह उपयुक्त है। सख्त लकड़ी की प्रजातियाँ जैसे टीक, साल, बांजु (ओक), मैफिल, माइकेला डी पटी रोकारपस आदि को परिपक्व होने में 80 वर्ष से भी ज्यादा समय लगता है जबकि बांस को परिपक्व होने में 4 वर्ष का समय लगता है। इस प्रकार जब हम बांस उत्पादों का उपयोग करते हैं उस समय हम कुछ हद तक लकड़ी का प्रतिस्थापन करते हैं जिसमें हम अपने वनों की सुरक्षा करते हैं जो हमारी धरती को अगली पीढ़ी के लिए हरा-भरा और स्वच्छ बनाते हैं।

बांस का रोपण

बांस को वाणिज्यिक रोपण को सघन  प्रंबधन सहित बांस रोपण को उसी रूप में स्पष्ट किया गया है जैसे अन्य नगदी फसलों की खेती की वार्षिक पूर्व निर्धारित पैदावार स्तर को बढ़ाने के लिए किया गया है। एक बार बांस रोपण अपने इष्टतम स्तर पर पहुंचने के बाद अर्थात पूर्वोत्तर क्षेत्र (एन ई आर) की प्रचलित जियो- मौसम स्थितयों के तहत सिम्पोडियल बांस के लिए रोपण के सातवें वर्ष में, आयु काफी स्थायी हो जाती है और यह तबतक नियमित रहती है जबतक इसकी आयु लगभग 20 से 25 वर्ष तक पहुंचती  है। इसके बाद यह जरूरी है कि नये रोपण को तैयार करने के लिए सभी रोपण को चरणबद्ध रूप से उखाड़ दिया जाए। इसके अलावा तीन प्रयोजनों के लिए वाणिज्यिक बांस रोपण किया जाए।
  1. सिर्फ प्ररोह की उच्च पैदावार के लिए
  2. सिर्फ पोल्स की  उच्च पैदावार के लिए
  3. प्ररोह और पोल्स की उच्च पैदावार के लिए
इस प्रकार के विभिन्न प्रयोजनों के लिए प्रबधन क्रियाएँ भी अलग-अलग है। कुन्तु यहाँ एन बी एम के अनुसार यह दिशा निर्देश एक ही समय में प्ररोह और पोल्स दोनों की उच्च पैदावार पर अधिक जोर देते हैं।

बांस के कल्म्प की देखभाल

मोटे तल्ले के उपयुक्त रखरखाव से उत्पादकता बढ़ती है और रोपण कमियों का काम भी आसन हो जाता है। मोटे तल्ले का प्रंबधन एक अधिक रखरखाव का कार्य है आंशिक तौर पर कटाई के परिणामस्वरूप होता है। रखरखाव गतिविधि के रूप में इसमें मोटे तल्ले की सघनता को रोकने के लिए अवाछित नाल को हटाना भी सम्मिलित है। यह सघन रूप से गुच्छेदार प्रजातियों के साथ विशेष रूप से आवश्यक है। कमी-कमी मोटे तल्ले में बेहतर प्ररोह उत्पादन के लिए कुछेक नालों को हटाना आवश्यक है। आदर्श रूप से मोटा तल्ला इस प्रकार प्रंबधित होना चाहिए कि प्रत्येक मोटे तल्ले में 9 से 12 नालों से अधिक नालें न हों। नालों को एक समान रूप से अवस्था के आधार पर एक, दो और तीन वर्षों के आधार पर 3-4 नाल द्वारा बांटा जाना चाहिए। सिम्पोडियल बांसों के लिए, चार वर्ष वाली अरु पुरानी सभी नालें कटाई में समय नालों से हटा की जानी चाहिए। सिम्पोडियल बांसों के लिए, चार वर्ष वाली और पुरानी सभी नालें कटाई में समय नालों से हटा दी जानी चाहिए। मेलोकैना बैसिफेरा के मामलें में , नालें दो वर्ष बाद पक जाती है, प्रौढ़  हो जाती है और इसलिए दो वर्ष वाली और पुरानी नालों को हटा दिया जाना चाहिए।
सड़न  के लिए नालों को नियंत्रित करना, प्ररोहों की स्वस्थ वृद्धि और नई नालों की बढ़वार के लिए आवश्यक है कि जिन नालों की कटाई कर दी गई है उनके ठुठों में सड़न पर ध्यान दिया जाना चाहिए। यदि सड़न स्पष्ट हो तो ठूंठ के आसपास खुदाई और इसे पूरी तरह से हटाने के सलाह दी जाती है। इसी प्रकार सड़ते ठूंठों को हटा दिया जाना चाहिए। फुफुन्दी संदूषित या रोग के लक्षणों पर ध्यान देना चाहिए और एक पादप रोग विशेषज्ञ को संबधित रोग निदान और नियंत्रण उपायों की सलाह के लिए बुलाया जाना चाहिए।

कल्म कटाई

सिम्पोडियल बांस की कटाई में निम्नलिखित नियमों का पालन किया जाए।
  1. परिपक्व कल्म की कटाई को रोपण के बाद चौथे वर्ष में आरंभ किया जाए।
  2. कल्म्प एप्रोच में सावधानी रखी जाए। यह जरुरी है कि काफी शोर किया जाए जिससे डरावने सांप जो बांस कल्म्प में अपना बसेरा बना लेते हैं, वे इसमें से निकल जाएँ।
  3. सूखे सर्द मौसम के दौरान सिर्फ कल्म को काटा जाए। सूखे की अवधि के दौरान बांस का स्टार्च तत्व कम हो जाता है। कल्म में कम स्टार्च तत्व बेघक आदि द्वारा आक्रमण के प्रति इसे संवेदनशील बनाता है।
  4. कटाई कार्य चयनित होना चाहिए, सिर्फ परिपक्व कल्म को काटा जाए।
  5. कटिंग कार्यकलाप के इस रूप में योजना बनाई जाए जिससे युवा कलमों को नुकसान न होने पाए।
  6. अधिक पैने औजारों का उपयोग किया जाए। यह सुझाव योग्य है कि कटाई औजारों को ब्लीच का उपयोग करते हुए संक्रमता रहित किया जाए। इससे पौधों में संक्रमण क खतरा कम हो जाता है।
  7. युवा कल्मों को न काटा जाए जब तक कि कल्म्प में संकुचन पके हुए कल्मों को काटने से रोकता है।
  8. प्रत्येक उस कल्म को काटा जाए जो भू-स्तर से प्रथम नोड के ठीक ऊपर स्थित हो। यह जरुरी है ताकि प्रोट्रीयुडिंग इंटरनोड में पानी एकत्र न हो जाए। पानी के एकत्रीकरण से विगलन हो सकता है और यह नाशी जीव को अपने अंडे छोड़ने के लिए आमंत्रित करता है।
  9. कभी भी पूरी कल्म्प को पूरी तरह तब तक न काटा जाए जब तक इस बात की पूरी जाँच न कर ली जाय कि यह रोग द्वारा गंभीर रूप से संवमित है।
  10. वर्षा मौसम के दौरान कल्म्प को न काटा जाए।
  11. कटाई के बाद प्रत्येक कल्म्प को न काटा जाए।
इनको काटने के बाद कल्म पर पलवार लगाई जाए। पलवार के लिए जैविक सामग्री प्रदान करने के लिए कल्म्प के चारों ओर स्वच्छ रूप से लगाया जाए। मानक नियम और प्रजाति के आधार पर नेक कल्म (औसतन) को काटते समय निम्नलिखित का पालन किया जाए:-
  1. 4/5 वर्षों में 3 कल्म प्रति कल्म्प
  2. 5/6 वर्षों में 4 कल्म प्रति कल्म्प
  3. 7 वर्षों में 5 कल्म प्रति कल्म्प
अथवा रोपण के सातवें वर्ष के बाद 1500 और 2000 क्ल्में प्रति हैक्टर

बांस की परिलक्षण तकनीकें

इमारती लकड़ी आदि की तुलना में बांस की मजबूती (मियाद) कम समय तक बनी रहती है। यदि बांस को उपचारित न किया गया हो और वातावरण के अनुसार ही इसका उपयोग किया गया हो तो इसका तेजी से जैविक क्षरण होने लगता है। इसका कारण यह है कि इसमें बड़ी मात्रा में हेमिसेलुलोज, स्टार्च होता है तथा इसमें नमी लग जाती है जो जैविक रूप से नुकसान पहुँचाने वाले अभिकार्कों के लिए पौष्टिक तत्वों आदि के रूप में कार्य करती है। यसे सभी जैविक क्षति पहुँचाने वाले घटकों जैसे व्हाईट रॉट, स्टेन फफूंद के समूह और कीट जैसे बौरर व दीमक आदि बांस पर आक्रमण कर देते हैं और इसे तेजी से नष्ट कर देते हैं। बांस के उपयोग के समय और भंडारण के दौरान उपचारित स्थितियों में न रखने से इन जैविक अभिकार्कों से 40% से अधिक क्षति होने का आकलन किया गया है।
बांस की मियाद को परिरक्षरण के दौरान उचित विधियों से रसायनों के प्रयोग से अथवा इनके  बिना बढ़ाया जा सकता है। फिर भी वैज्ञानिक दृष्टिकोण से और खेत के अनुभव यह सिद्ध हुआ है कि परिरक्षण विधियों में रसायनों के प्रयोग करने से बांस की मियाद बिना रसायनों के प्रयोग की तुलना में कई गुना बढ़ जाती है। कटे हुए बांस के डंडों की मियाद बढ़ाने के लिए प्रारंभिक उपायों में परिरक्षण विधियों को भंडारण के समय शुरू से ही अपनाया जाना चाहिए, कटे हुए डंडों का उचित भंडारण एक मुख्य पहलू है, क्योंकिइसमें थोड़ी सी भी ढील होने पर भारी क्षति हो सकती है। जब बांस का भंडारण किया जाता है, तो यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि डंडों में ज्यादा नमी न हो, वे वर्षा के कारण या जमीन में पानी गिरने से गीले न हों, जमीन पर इन्हें खुलें में रखने से उनपर फफूंद, कीड़े आदि लग जाते हैं। इसके अलावा धूप में पड़े रहने से इनमें दरारें पड़ जाती है, इसलिए बांस के डंडों को 6 से 12 सप्ताह तक यदि रखा जाना हो तो  इन्हें बंद स्थान में भंडारित किया जाना चाहिए जो मौसम पर निर्भर करता है।
परिरक्षण के उपाय: परिरक्षण की कई तरह की तकनीकें हैं, पारम्परिक और रासायनिक विधियाँ भी हैं ।
हाँ तो दोस्तों आज की पोस्ट किसी लगी  आप लिखे और कमेंट जरूर करे  धन्यवाद 
                                                                                                          मोहन नेगी  






2 Comments:

At January 13, 2020 at 8:00 AM , Blogger techhelpwithsachin said...

Thanks for negi sir u are give me full information of bash👌👌..

 
At January 13, 2020 at 10:21 PM , Blogger negi shop said...

tq sir
for visit my blog . aap ka bhut bhut well come hai
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