ABOUT-BABOOL TREE
बबूल पेड़ की कुछ बातें
बूल निलोटिका (हिंदी नाम - बाबूल ) एक पेड़ है जो वर्ष के अधिक से अधिक भाग के दौरान जलवायु शुष्क होने के साथ रेतीले या बाँझ क्षेत्रों में 20 मीटर ऊँचा 5 मी। एक मध्यम घनत्व के साथ मुकुट कुछ हद तक चपटा या गोल होता है। अगर मुकुट गोल हो तो शाखाओं को नीचे की ओर छोड़ने की प्रवृत्ति होती है।
बबूल का नीलकोटिका एक धीमी गति से विकसित होने वाली प्रजाति है, लेकिन यह लंबे समय तक जीवित रहती है। प्रजाति अत्यंत शुष्क वातावरण का सामना कर सकती है और बाढ़ को भी सहन कर सकती है। बबूल का नीलकोटिका अपने कांटों की वजह से एक अच्छा सुरक्षात्मक बचाव करता है। इसकी सीमा के कुछ हिस्सों में छोटी पत्ती फली और पत्तियों का उपभोग करती है, लेकिन कहीं-कहीं यह मवेशियों के साथ भी बहुत लोकप्रिय है। फली का उपयोग भारत में पोल्ट्री राशन के पूरक के रूप में किया जाता है। भारत में चारे के लिए आमतौर पर शाखाएँ खोदी जाती हैं। जंगली में, फली-खासकर जब सूखे और पत्तियों को भेड़ जैसे छोटे जानवरों द्वारा खाया जाता है, लेकिन मवेशी भी उन्हें बहुत स्वादिष्ट लगते हैं। फली बकरियों के लिए जहरीली होती है। उन्हें पूरक के रूप में सबसे अच्छा सूखा दिया जाता है, न कि हरे चारे के रूप में।
लकड़ी मजबूत, टिकाऊ, कठोर, बहुत सदमे प्रतिरोधी है, और इसका उपयोग निर्माण, खदान प्रॉप्स, टूल हैंडल और गाड़ियों के लिए किया जाता है। इसका उच्च कैलोरी मान है और यह उत्कृष्ट ईंधन और गुणवत्ता वाला चारकोल बनाता है।
छाल में टैनिन की 12 प्रतिशत से 20 प्रतिशत सांद्रता होती है, जिसका उपयोग सभी प्रकार के चमड़े को कम करने में किया जाता है। बबूल के कपड़े को डाई करने के लिए बबूल की नीलकोटिका से बनी स्याही का इस्तेमाल सदियों से किया जा रहा है।
बबूल की नालिका में औषधीय उपयोगों का खजाना है। इसका उपयोग पेट की ख़राबी और दर्द के लिए किया जाता है, छाल को स्कर्वी से बचाने के लिए चबाया जाता है, पेचिश और दस्त के लिए एक जलसेक लिया जाता है। इस प्रजाति का उपयोग पशु चिकित्सा में भी किया जाता है, उदाहरण के लिए, मवेशियों में यकृत-शुक्राणुओं को कम करने के लिए मोलस्काइसाइड के रूप में। मवेशियों के लिए चारे के रूप में फली वांछनीय है, और पत्तियों, युवा शूटिंग और युवा फली को दूध उत्पादन में सहायता करने के लिए सोचा जाता है।
पेड़ 5-7 वर्षों के भीतर फलने लगते हैं और लगभग 18 किलोग्राम फली / वर्ष उपज देते हैं।
बबूल के फायदे :
बबूल के औषधीय प्रयोग का तरीका, प्रयोग की मात्रा एवं विधियां ये हैंः-
अधिक पसीना आने पर बबूल से लाभ :
- अधिक पसीना आने की परेशानी में बबूल के पत्ते और बाल हरड़ को बराबर-बराबर मिलाकर महीन पीस लें। इस चूर्ण से पूरे बदन पर मालिश करें। कुछ समय बाद नहा लें। नियमित रूप से यह प्रयोग कुछ दिन तक करने से पसीना आना बन्द हो जाता है।
- बबूल के पत्ते के पेस्ट का उबटन लगाने से भी पसीना आना बंद हो जाता है।
शारीरिक जलन की समस्या में बबूल के फायदे :
शरीर के किसी अंग में जलन हो रही हो तो बबूल की छाल का काढ़ा बना लें। इसमें मिश्री मिलाकर पीने से जलन शांत होती है।
बबूल के उपयोग से कमर दर्द का इलाज:
कमर दर्द में बबूल से फायदा लेने के लिए बबूल की छाल, कीकर की फली और गोंद को बराबर-बराबर मात्रा में मिलाकर पीस लें। एक चम्मच की मात्रा में दिन में 3 बार सेवन करने से कमर दर्द से आराम मिलता है।
बबूल के इस्तेमाल से दाद (खुजली) का उपचार :
दाद (खुजली) को ठीक करने के लिए बबूल के फूलों को सिरके में पीस लें। इसे खुजली (दाद) वाले अंग पर लगाएं। दाद और खुजली में लाभ होता है।
घाव में बबूल के फायदे :
बबूल के पत्तों को पीसकर घाव पर लगाएं। इससे घाव तुरंत ठीक हो जाता है। बेहतर लाभ के लिए किसी आयुर्वेदिक चिकित्सक से जरूर परामर्श लें।
खांसी में बबूल के फायदे :
- बबूल के पत्ते तथा तने की छाल का चूर्ण बनाएं। इसके 1-2 ग्राम की मात्रा में शहद मिलाकर सेवन करने से खांसी में लाभ होता है।
- इसी तरह 1 ग्राम बबूल के चूर्ण का सेवन करने से भी खांसी ठीक होती है।
बबूल के औषधीय गुण से पेट के रोगों में फायदा :
- बबूल की छाल का काढ़ा बना लें। काढ़ा जब थोड़ा गाढ़ा हो जाए तो इसे 1-2 मिली की मात्रा में मट्ठे के साथ पिएं। इससे पेट की बीमारी में लाभ होता है। इस दौरान सिर्फ मट्ठे का सेवन करना चाहिए।
- पेट के दर्द से आराम पाने के लिए बबूल के फल को भून लें। इसका चूर्ण बनाकर, उबले हुए जल के साथ सेवन करें। इससे पेट दर्द से राहत मिलती है।
- बबूल के छाल से बने काढ़ा को छाछ के साथ पिएं। आहार में छाछ का सेवन करने से जलोदर रोग में लाभ होता है।
भूख बढ़ाने के लिए बबूल का सेवन :
भूख की कमी या भोजन से अरुचि की समस्या को ठीक करने के लिए बबूल या कीकर की फली का अचार लें। इसमें सेंधा नमक मिलाकर खिलाएं। इससे भूख बढ़ती है, और जठराग्नि प्रदीप्त होती है।
बबूल के औषधीय गुण से मुंह के छाले का इलाज:
मुंह के छाले की परेशानी में भी बबूल से फायदा मिल सकता है। बबूल की छाल के काढ़ा से 2-3 बार गरारे करें। इससे मुंह के छाले ठीक होते हैं।
दांतों के रोग में बबूल से लाभ :
- दांतों में दर्द होने पर बबूल या कीकर की फली (babul ki fali) का छिलका लें। इसमें बादाम के छिलके की राख मिला लें। इसमें नमक मिलाकर मंजन करें। इससे दांतों का दर्द ठीक होता है।
- इसी तरह बबूल की कोमल टहनियों से दातून करने से भी दांतों की बीमारी ठीक होती है। दांत मजबूत होते हैं।
- दांतों के दर्द में बबूल की छाल, पत्ते, फूल और फलियां लें। सभी को बराबर-बराबर मात्रा में मिलाकर चूर्ण बनाएं। इस चूर्ण से मंजन करने से दांतों के रोग दूर होते हैं।
- इसके अलावा बबूल की छाल का काढ़ा बनाकर कुल्ला करने से दांतों का दर्द दूर होता है।
- बबूल की छाल के काढ़ा से गरारा करने से भी दांतों के दर्द से राहत मिलती है।
बबूल के सेवन से कंठ के रोग का इलाज :
- बबूल के पत्ते और छाल एवं बड़ की छाल लें। सबको बराबर-बराबर मात्रा में मिलाकर एक गिलास पानी में भिगो दें। सुबह छानकर रख लें। इससे कुल्ला (गरारा) करने से गले के रोग मिट जाते हैं।
- इसके अलावा बबूल की छाल के काढ़ा से गरारा करें। इससे भी कंठ के रोग में लाभ होता है।
आंखों के रोग में बबूल का औषधीय गुण फायदेमंद :
- बबूल के कोमल पत्तों को गाय के दूध में पीस लें। इसका रस निकालकर 1-2 बूंद आंखों में डालें। इससे आंखों के दर्द ठीक होते हैं। इससे आंखों की सूजन में भी लाभ होता है।
- आंखों से पानी बहने पर बबूल के पत्तों का काढ़ा बनाएं। इसमें शहद मिलाकर काजल की तरह लगाएं। इससे आंखों से पानी बहने की परेशानी ठीक होती है।
- बबूल के पत्ते तथा तने की छाल का काढ़ा बनाकर आंखों को धोएं। इससे आंंखों की अन्य बीमारी भी ठीक हो जाती है।
श्वसन-तंत्र संबंधित विकार में बबूल का इस्तेमाल फायदेमंद:
- बबूल के पत्ते तथा तने की छाल का चूर्ण बनाएं। इसके 1-2 ग्राम की मात्रा में शहद मिलाकर सेवन करे। इससे श्वसन-तंत्र की बीमारी में लाभ होता है।
- इसी तरह 1 ग्राम बबूल गोंद का सेवन करने से सांसों की बीमारी ठीक होती है।
बबूल के सेवन से मूत्र रोग का इलाज :
- बबूल की 10-20 कोपलों को एक गिलास पानी में भिगोएं। इसे रात भर पानी में ही रखें। सुबह पानी को साफ कर पिएं। इससे पेशाब में जलन की समस्या में लाभ मिलता है।
- इसी तरह 15-30 मिली बबूल के तने की छाल का काढ़ा बनाएं। इसका सेवन करने से बार-बार पेशाब आने की परेशानी ठीक हो जाती है।
वीर्य रोग (धातु रोग) में बबूल का औषधीय गुण लाभदायक
- बबूल की फली को छाया में सुखाकर पीस लें। बराबर मात्रा में मिश्री मिला लें। एक चम्मच की मात्रा में सुबह और शाम रोज पानी के साथ लें। इससे वीर्य के विकार ठीक होते हैं।
- बबूल के गोंद को घी में तलें। इसको खाने से पुरुषों का वीर्य बढ़ता है।
- बबूल के गोंद के फायदे (gond ke fayde) से पुरुषों के यौन संबंधी समस्याओं को ठीक किया जा सकता है।
- 2 ग्राम बबूल के पत्ते में 1 ग्राम जीरा तथा चीनी मिलाएं। इसे 100 मिली दूध में मिलाकर सेवन करें। इससे शुक्राणु संबंधित रोगों में लाभ होता है।
बबूल के गुण से स्वप्न दोष का इलाज :
बबूल के उपयोग से स्वप्न दोष का उपचार होता है। 20 ग्राम बबूल पंचांग में 10 ग्राम मिश्री मिलाएं। इसे एक चम्मच की मात्रा में सुबह-शाम रोज सेवन करें। इससे स्वप्न दोष में लाभ होगा।
योनि के ढीलेपन की समस्या में बबूल के फायदे:
- एक हिस्सा बबूल की छाल को 10 हिस्सा पानी में रात भर भिगोएं। सुबह पानी को उबाल लें। जब पानी आधा रह जाए तो छान कर बोतल में भर लें। इस पानी से योनि को धोने से योनि का ढीलापन दूर होता है।
- बबूल की फलियों का चिपचिपा पदार्थ लें। इससे थोड़े मोटे कपड़े को 7 बार गीला करके सुखा लें। संभोग से पहले इस कपड़े के टुकड़े को दूध या पानी में भिगोएं। इस दूध या पानी को पी लें। इससे योनि के ढीलापन की समस्या दूर होती है।
मासिक धर्म विकार में बबूल का गुण लाभदायक:
- बबूल का 4.5 ग्राम भुना हुआ गोंद लें। गेरु 4.5 ग्राम लें। इनको पीसकर सुबह सेवन करने से मासिक विकारों में लाभ होता है।
- बबूल की 20 ग्राम छाल को 400 मिली पानी में उबालें। जब काढ़ा 100 मिली बच जाए तो दिन में तीन बार पीएं। इससे मासिक धर्म की बीमारी जैसे मासिक धर्म में खून अधिक आने की समस्या ठीक होती है।
मेनोरेजिया में बबूल का गुण लाभदायक :
बबूल के गोंद और गेहूं को बराबर-बराबर मात्रा में मिलाकर पीस लें। इसे 2 चम्मच की मात्रा में सुबह-शाम सेवन करने से मेनोरेजिया में लाभ होता है।
ल्यूकोरिया में बबूल के औषधीय गुण से फायदा:
- ल्यूकोरिया के इलाज के लिए 10 ग्राम बबूल की छाल को 400 मिली जल में पकाएं। जब काढ़ा 100 मिली रह जाए तो काढ़ा में 2-2 चम्मच मिश्री मिला लें। इसे सुबह-शाम पिएं। इससे ल्यूकोरिया में फायदा होता है।
- काढ़ा में थोड़ी-सी फिटकरी मिलाकर योनि को धोने से भी ल्यूकोरिया में फायदा मिलता है।
- इसके अलावा 15-30 मिली बबूल के तने की छाल का काढ़ा का सेवन करें। इससे भी ल्यूकोरिया में लाभ होता है।
बबूल के गुण से सूजाक का इलाज:
- बबूल की 10-20 कोपलों को एक गिलास पानी में भिगोएं। इसे रात भर ऐसे ही रहने दें। सुबह पानी को साफ कर पिएं। इससे सूजाक में लाभ मिलता है।
- 10 ग्राम बबूल की कोंपलों को रात भर एक गिलास पानी में भिगोएं। इसे सुबह मसलकर छान लें। इसमें 20 ग्राम गर्म घी मिलाकर पिलाएं। दूसरे दिन भी ऐसा ही करें। तीसरे दिन घी नहीं मिलाएं। चौथे और पांचवे दिन सिर्फ इसका हिम (रात भर का भिगोया हुआ पानी) पीने से सूजाक में बहुत लाभ होता है।
- बबूल की 10 ग्राम गोंद को एक गिलास पानी में डालें। इसकी पिचकारी देने से योनि में दर्द और सूजन की परेशानी ठीक होती है। इससे सूजाक रोग के कारण होने वाली जलन भी ठीक होती है।
- बबूल के 5-10 पत्तों को 1 चम्मच शक्कर और 2 नग काली मिर्च के साथ या 5-6 अनार के पत्तों के साथ पीसकर छान लें। इसे पीने से सूजाक में लाभ होता है।
सिफलिस रोग के इलाज के लिए बबूल का उपयोग:
बबूल के पत्ते से चूर्ण बना लें। इसे सिफलिश वाले घाव पर छिड़कें। इससे घाव तुरंत ठीक हो जाता है। बेहतर परिणाम के लिए किसी आयुर्वेदिक चिकित्सक से जरूर परामर्श लें।
सूतिका को होने वाले रोग में बबूल का उपयोग:
- जो महिलाएं हाल-फिलहाल में मां बनी हैं। उनको होने वाली समस्याओं में बबूल से लाभ होता है। बबूल की छाल का 10 ग्राम चूर्ण बनाएं। इसमें 3 नग काली मिर्च मिलाएं। दोनों को पीस लें। इसे सुबह-शाम खाएं। इस दौरान सिर्फ बाजरे की रोटी और गाय का दूध लें। इससे गंभीर सूतिका रोग में भी लाभ होता है।
- बबूल के गोंद को घी में तलें। इसे प्रसूति काल में स्त्रियों को खिलाने से शारीरिक शक्ति भी बढ़ती है।
दस्त रोकने के लिए बबूल का इस्तेमाल :बबूल के 8-10 कोमल पत्तों का रस लें। आप रस में 500 मिग्रा जीरा और 1-2 ग्राम अनार की कलियों को भी मिला सकते हैं। इसे 100 मिली पानी में पीस लें। पानी में एक टुकड़ा गर्म इऔट का बुझा लें। दिन में 2-3 बार 2 चम्मच इस पानी को पिलाने से दस्त बंद हो जाता है।
- बबूल के पत्ते के रस को छाछ में मिलाकर पिलाने से हर प्रकार के दस्त पर रोक लगती है।
- दस्त की परेशानी में बबूल की दो फलियां खाकर ऊपर से छाछ पिएंं। दस्त बंद हो जाती है।
- दस्त को बंद करने के लिए बबूल के पत्तों से बने पेस्ट को जल में घोलकर पिएं। इससे फायदा होता है।
- बबूल के पत्ते, और शयामले जीरे को बराबर-बराबर मात्रा में लें। इसे पीसकर 10 ग्राम की मात्रा में रात के समय देने से कफज विकार के कारण होने वाले दस्त में लाभ होता है।
पेचिश में बबूल के गुण से फायदा :
- बबूल की 10 ग्राम गोंद को 50 मिली पानी में भिगोएं। इसे मसलकर छानें। इसे पिलाने से दस्त और पेचिश में लाभ होता है।
- बबूल की कोमल पत्तियों के एक चम्मच रस में थोड़ी-सी हरड़ का चूर्ण या शहद मिलाएं। इसका सेवन करने से पेचिश में फायदा होता है।
- बबूल के तने की छाल का काढ़ा बनाएं। इसका सेवन करने से दस्त और पेचिश में लाभ होता है।
- बबूल के पत्ते का काढ़ा अथवा पत्ते के पेस्ट को तण्डुलोदक के साथ प्रयोग करने से दस्त और पेचिश में फायदा होता है।
बबूल के इस्तेमाल से पीलिया का उपचार:
बबूल के फूलों के चूर्ण में बराबर मात्रा में मिश्री मिलाएंं। इसे 10 ग्राम की मात्रा में दिन में तीन बार सेवन करने से पीलिया में लाभ होता है।
दोस्तों आप ने पढ़ा की बबूल के कितने फायदे हैं आयुर्वेद में बबूल के १०० से ज्यादा फायदे हैं जो आज की जीवन शैली में उपयोग में न के बराबर लिए जाते हैं
तो आप लोग कमेंट कर के जरूर बताये आप को ये पोस्ट किसी लगी और लिखे की आप को किस पेड़ के बारे में जानना मेरी कोशिश रहेगी में आप को ज्यादा से ज्यादा बता सकू : ओके आप से बाद में मिलते है :
1 Comments:
Nice bhi, babul tree ke important batane ke liye
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