Saturday, January 4, 2020

चीड़ का पेड़


                     चीड़ का पेड़ 


चीड़ (अंग्रेज़ी: Pine) एक सपुष्पक, किन्तु अनावृतबीजी पौधा है। यह सीधा पृथ्वी पर खड़ा रहता है। इसमें शाखाएँ तथा प्रशाखाएँ निकलकर शंक्वाकार शरीर की रचना करती हैं। पूरे विश्व में चीड़ की 115 प्रजातियाँ पाई जाती हैं। ये 03 से 80 मीटर तक लम्बे हो सकते हैं। चीड़ के वृक्ष पृथ्वी के उत्तरी गोलार्ध में पाए जाते हैं। इनकी 90 जातियाँ उत्तर में वृक्ष रेखा से लेकर दक्षिण में शीतोष्ण कटिबंध तथा उष्ण कटिबंध के ठंडे पहाड़ों पर फैली हुई हैं। इनके विस्तार के मुख्य स्थान उत्तरी यूरोप, उत्तरी अमेरिका, उत्तरी अफ़्रीका के शीतोष्ण भाग तथा एशिया में भारत, बर्मा, जावा, सुमात्रा, बोर्नियो और फिलीपींस द्वीपसमूह हैं।
चीड़ के कम उम्र के छोटे पौधों में निचली शाखाओं के अधिक दूर तक फैलने तथा ऊपरी शाखाओं के कम दूर तक फैलने के करण इनका सामान्य आकार पिरामिड जैसा हो जाता है। पुराने होने पर वृक्षों का आकार धीरे-धीरे गोलाकार हो जाता है। जगलों में उगने वाले वृक्षों की निचली शाखाएँ शीघ्र गिर जाती हैं और इनका तना काफ़ी सीधा, ऊँचा, स्तंभ जैसा हो जाता है। इनकी कुछ जातियों में एक से अधिक मुख्य तने पाए जाते हैं। छाल साधारणत: मोटी और खुरदरी होती है, परंतु कुछ जातियों में पतली भी होती है।

पत्तियाँ

चीड़ के वृक्ष में दो प्रकार की टहनियाँ पाई जाती हैं- एक लंबी, जिन पर शल्क पत्र लगे होते हैं, तथा दूसरी छोटी टहनियाँ, जिन पर सुई के आकार की लंबी, नुकीली पत्तियाँ गुच्छों में लगी होती हैं। नए पौधों में पत्तियाँ एक या दो सप्ताह में ही पीली होकर गिर जाती हैं। वृक्षों के बड़े हो जाने पर पत्तियाँ इतनी जल्दी नहीं गिरतीं। सदा हरी रहने वाली पत्तियों की अनुप्रस्थ काट तिकोनी, अर्धवृत्ताकार तथा कभी-कभी वृत्ताकार भी होती है। पत्तियाँ दो, तीन, पाँच या आठ के गुच्छों में या अकेली ही टहनियों से निकलती हैं। इनकी लंबाई दो से लेकर 14 इंच तक होती है और इनके दोनों तरु रंध्र कई पंक्तियों में पाए जाते हैं। पत्ती के अंदर एक या दो वाहिनी बंडल और दो या अधिक रेजिन नलिकाएँ होती हैं।

पौध तैयार करना

चीड़ के पौधे को उगाने के लिये काफ़ी अच्छी भूमि तैयार करनी पड़ती है। छोटी-छोटी क्यारियों में मार्च-अप्रैल के महीने में बीज मिट्टी में एक या दो इंच नीचे बो दिया जाता है। चूहों, चिड़ियों और अन्य जंतुओं से इनकी रक्षा की विशेष आवश्यकता करनी पड़ती है। अंकुर निकल आने पर इन्हें कड़ी धूप से बचाना चाहिए। एक या दो वर्ष पश्चात् इन्हें खोदकर उचित स्थान पर लगा देते हैं। खोदते समय सावधानी रखनी चाहिए, जिसमें जड़ों को किसी प्रकार की हानि न पहुँचे, अन्यथा चीड़, जो स्वभावत: जड़ की हानि नहीं सहन कर सकता, मर जायगा।
चीड़ (पाइनस पालुस्ट्रिस) का वृक्ष

प्रकार

चीड़ दो प्रकार के होते हैं-
  1. कोमल या सफ़ेद, जिसे 'हैप्लोज़ाइलॉन' कहा जाता है। इसकी पत्तियों में एक वाहिनी बंडल होता है, और एक गुच्छे में पाँच, या कभी-कभी से कम, पत्तियाँ होती हैं। वसंत और सूखे मौसम की बनी लकड़ियों में विशेष अंतर नहीं होता।
  2. कठोर या पीला चीड़, जिसे 'डिप्लोज़ाइलॉन' इसमें एक गुच्छे में दो अथव तीन पत्तियाँ होती हैं। इनकी वसंत और सूखे ऋतु की लकड़ियों में काफ़ी अंतर होता है।

आर्थिक महत्त्व

चीड़ की लकड़ी काफ़ी आर्थिक महत्व की हाती है। विश्व की सब उपयोगी लकड़ियों का लगभग आधा भाग चीड़ द्वारा पूरा होता है। अनेकानेक कार्यों में, जैसे- पुल निर्माण में, बड़ी-बड़ी इमारतों में, रेलगाड़ी की पटरियों के लिये, कुर्सी, मेज, संदूक और खिलौने इत्यादि बनाने में इसका उपयोग होता है। कठोर चीड़ की लकड़ियाँ अधिक मजबूत होती हैं। अच्छाई के आधार पर इन्हें पाँच वर्गों में विभाजित किया गया है। इन वर्गों के कुछ उदाहरण निम्नलिखित हैं[1]-
  1. पाइनस पालुस्ट्रिस (Pinus palustris), पाइनस केरीबिया (Pinus caribaea)
  2. पाइनस सिलवेस्ट्रिस (Pinus sylvestris), पाइनस रेजिनोसा (Pinus resinosa)
  3. पाइनस पांडेरोसा (Pinus ponderosa)
  4. पाइनस पिनिया (Pinus pinea), पाइनस लौंजिफोलिया (Pinus longifolia) तथा पाइनस रेडिएटा Pinus radiata)
  5. पाइनस बैंक्सियाना (Pinus banksiana)



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