आज.....फिर से आई याद तेरी। .......
कुछ इस तरह से जुड़ जाते है लोग
अनचाही मंजिल मे मिल जाते है लोग
कुछ तो कह देते है .....कुछ चुप हो जाते है
किताबें झाँकती हैं बंद अलमारी के शीशों से
बड़ी हसरत से तकती हैं
महीनों अब मुलाक़ातें नहीं होतीं
जो शामें उन की सोहबत में कटा करती थीं, अब अक्सर
गुज़र जाती हैं कम्पयूटर के पर्दों पर..
Mohan negi
बड़ी हसरत से तकती हैं
महीनों अब मुलाक़ातें नहीं होतीं
जो शामें उन की सोहबत में कटा करती थीं, अब अक्सर
गुज़र जाती हैं कम्पयूटर के पर्दों पर..
Mohan negi
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