Wednesday, July 10, 2019

धन्य_मेरा_पहाड़ी
    ==========

मै पहाड़ी डॉक्टर हूँ,
पर पहाड़ नहीं जाऊंगा।
मै पहाड़ी मास्टर हूँ,
पर पहाड़ में नहीं पढ़ाऊँगा।।

मै पहाड़ी बाबू हूँ,
पहाड़ के दफ्तर में नहीं बैठना है।
यू पी के वक्त पहाड़ में नौकरी की ललक थी,
पर अब मुझे पहाड़ नहीं लौटना है।।

मै पहाड़ी वकील हूँ,
पहाड़ में सेवा नहीं दूंगा।
मुज़फ्फरनगर का केस मै नही लडूंगा

मै पहाड़ी सामाजिक आदमी हूँ,
पहाड़ के लिए सोचूंगा,
पर शहर में ही रहूंगा।
शहर में चिन्तन मंथन करूंगा।।

मै पहाड़ी गीत गायक हूँ,
शहर से ही पीड़ा गाऊँगा
पर हिंदी में बच्याऊँगा
पहाड़ी साहित्याकर हूँ,
शहर में ही मै कविता सुनाऊंगा ।।

मै पहाड़ी बिजनेस मैन हूँ,
पर धंधा शहर में ही करूंगा।
खनन यहां की नदियों से करके,
पहडियों पर मनमाने दाम धरूँगा।।

मैपहाड़ी पत्रकार हूँ,
पर शहर से ही खबर लिखूंगा।
सरकार से एड लेकर,
लम्बी गाडी में पहाड़ घूमता दिखूंगा।।

विधायक संसद पहाड़ से बना हूँ,
पर शहर में दरवार लगाऊंगा।
जब कोई आपदा आएगी वहां,
तभी चमचों के साथ जाऊँगा।।

बचे है जो लोग अब इस  पहाड़ में ?
बस वह भी लगे है गाँव की उंदार में ।

#फिर_पहाड़_में_कौन_रहेगा ?
===================

अग्रवाल स्वीट, नेपाली मोमॉज
पंजाबी रेस्टोरेंट और गुप्ता लॉज।

नाज़िमाबाद बैंड, राजस्थानी लुहार।
यूपी टूर ट्रेवेल्स और गुजरती सुनार।।

पान की पिक और विहारी की खैनी,
यादव प्रोपर्टी और दिल्ली का बिल्डर सैनी।

पारस दूध और हलाली मीट वाला,
बंगाली डाक्टर और लेदर सीट वाला।

#फिर_पहाड़ी_खुश !
=============
अपने मुसीबतो का पहाड़,
देशीयों के गले फंसा दिया ।
दिल्ली पंजाब हल्द्वानी देहरादून में,
पाचस गज पर मकान बना लिया है।

अब ज़िन्दगी आराम से कट जाएगी,
बच्चो की ज़िन्दगी भी संवर जाएगी।

मूल निवास का मुद्दा अब यहाँ मुद्दा नही है
पहाड़ियों के लिए पहाड़ में कोई धंधा नही है

शहर में तू बड़ा डर डर कर रहता है
गलती न हो तेरी फिर भी सहता है

वाह क्या दिमाग पाया तुमने रे पहाड़ी
अपना घर छोड़कर बसा दिए यहाँ बाहरी

0 Comments:

Post a Comment

Subscribe to Post Comments [Atom]

<< Home